ग़ज़ल
मुश्किलों में हैं घिरे तो गुनगुना कर देखिए इन उदासी के पलों में मुस्कुरा कर देखिए आप भी हैं ग़र परेशां नफ़रतों के दौर से, प्यार के कुछ फूल गुलशन में उगाकर देखिए ज़िंदगी में जीत ही मिलती नहीं है हर दफ़ा, हार को भी जीत जैसा ही पचाकर देखिए नेमतें रब की बरसते देखना चाहें अगर, एक भूखे को कभी रोटी खिलाकर देखिए क्या पता कोई मुसाफ़िर ढूँढता हो रास्ता, देहरी पर रोज़ इक दीपक जलाकर देखिए — बृज राज किशोर ‘राहगीर’
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