ग़ज़ल
मैं ख़फ़ा हूँ, आप सुनते क्यूँ नहीं? ग़मज़दा हूँ, आप सुनते क्यूँ नहीं? आप तक जो बात पहुँची, मैं अलग
Read Moreजाल भी दिखते नहीं हैं, भेष बदले हैं शिकारी। रोज़ ही फँसने लगी हैं, एक दो चिड़िया हमारी।।
Read Moreजबकि चारों ओर स्वर हिंदुत्व के मुखरित हुए हैं, कौन हैं वे लोग जो इस अभ्युदय से डर रहे हैं?
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