लोकतंत्र
लोकतंत्र का डंका बजता, करते मीठा शोर। जनता के वे सेवक बनते, नाचे जैसे मोर।। बाँट नोट की होती रहती,
Read Moreपरियों की रानी सुहासिनी नाम की तरह ही कोमल, मृदुल, हंसमुख थी। अपनी मृदुल वाणी से सबकी चहेती। आज रानी
Read Moreमुक्त हूं मैं रूढ़िवादी सोच से, उन्मुक्त नहीं। स्वतंत्र हूं अवांछनीय बंधनों से, स्वच्छंद नहीं।। संस्कारी मन, सुशील वर्तन, हौसला
Read Moreरिश्तों में हैं पतझड़ ऋतु आया, खिलता था कभी, बसंत मुरझाया।। फूलों में मनभावन खुशबू नहीं हैं, तितलियों में चंचलता
Read More“श्रुति, क्या कर रही हो अब तक?” “मुझे जल्दी जाना है आज।” ” चले जाओ। मैं ने कब रोका है।”
Read Moreकल और आज हम तुम जब पहली बार मिले थे, अजनबी से।देखा एक दूजे को और मन को भा गये।
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