प्रकृति का एक झलक
मंद मारुत ने जँभाई लेते हुए अँगड़ाई ली, धीरे-धीरे मेघ-माला ने हमला किये प्राण, सूरज के चंड हवा-भँँवरी घुमा-घुमा, निगले
Read Moreमंद मारुत ने जँभाई लेते हुए अँगड़ाई ली, धीरे-धीरे मेघ-माला ने हमला किये प्राण, सूरज के चंड हवा-भँँवरी घुमा-घुमा, निगले
Read Moreफूल खिल रहे हैं ओस गिर रही है घास कितनी हरी है और कितनी ताज़ा भी हवा इतनी ठंड क्यों
Read Moreपुष्प-घाटी में बसा है स्वर्ग जहाँ पुष्पों का है अनोखा संगम जहाँ हरी-भरी है प्रकृति की हर झलक जहाँ बहती
Read Moreआँखें बोलती हैं होंठ चमकते हैं गाल लाल हैं मुँह मुस्करातता है हाथ झुकते हैं पैर थिरकते हैं नितंब ताल
Read More“माँ… ओ री माँ… भिखारी किसे कहते हैं?” रज़िया पटरी के किनारे पर बैठकर इधर-उधर चलती गाड़ियों की ओर देख
Read Moreकिसीकी अनमोल अमानत बनना इतना आसान क्यों न हो, पूरे हिंद महा सागर के विराट मुल्कों में एक अलग अस्तित्व
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