मन पतझड़
कभी कभी इस उर की पीड़ा ,पतझड़ जैसी हो जाती है । * रंग बिरंगी दुनिया ,यह जब सेमल फूल
Read Moreहोरी का गोदान कभी क्या हो पायेगा ? पाँच पाँच करके हैं बीते साल कई ।चोर उचक्के हुयें हैं मालामाल
Read Moreचहुँ दिशि दूर तलक फैला है,अंधकार का मेला । उसी निशा में टिमटिम करता दीपक एक अकेला । . एक अकेली नाव ,नदी के लम्बे दूर किनारे
Read Moreनारी और नदी कहीं ना कहीं समान होती हैं। दोनों अपनी जगह पर महान होती हैं। एक जीवन दायक जल
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