पतझड़
डाल डाल हर बाग बगीचे ,पतझड़ के वीराने आये ।
लौट गये मायूसी लेकर, कुछ भौंरे दीवाने आये ।
नंगे पेड़ बिना पत्तो के ,रात रात भर शरमाते हैं ।
बूढ़ी सी शाखाओं पर वो, धूप शीत सब सह जाते हैं।
रोगी से कुछ पीले पत्ते मुकर रहे नीचे गिरने से ।
जैसे कोई बूढ़ा मानव डरता है अपने मरने से ।
शुष्क हवा पछुआ के झोंके लेकर दर्द पुराने आये ।
डाल डाल ………………………………………….
शाखाओं से टूटे पत्ते बेघर हो कर घूम रहें हैं ।
थे सवार कल वो फुनगी पर ,आज जमीं को चूम रहें हैं ।
शाम सुबह बेचारा चातक ,दर्द भरे सुर में गाता है ।
गुणविहीन सेमल प्रसून बेशरम त्रिया सा मुस्काता है ।
कुछ बेचारे नादां पक्षी सेमल पर ठग जाने आये ।
डाल डाल …………..
© दिवाकर दत्त त्रिपाठी