ग़म क्या करना
ख़ार हो फूल हो हालात पे ग़म क्या करना
मैं तो कहता हूँ किसी बात पे ग़म क्या करना
ख़ाक को आग बना दे वो अगर चाहे तो
ख़ाक हो आग हो औकात पे ग़म क्या करना
कीमती है ये बहुत और मुलाकातों से
आख़िरी बार मुलाकात पे ग़म क्या करना
ढूढता था न मिला आज ख़ुद मिलेगा वो
मौत की रात हसीं रात, पे ग़म क्या करना
जीत पर नाम लिखा ग़र है किसी अपने का
जीत से लाख गुना, मात पे ग़म क्या करना
:प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’
फतेहपुर उ.प्र.
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