Author: गोपाल बघेल 'मधु'

हाइकु/सेदोका

हे राम, मैं हैरान! (मधु हाइकू)

हे राम, मैं हैरान;देखकर तेरा मकान! पाकर मुक़ाम,झाँक कर मचान;चलते तीर कमान,सब लहूलुहान! बिना इत्मीनान,ना कुछ सरोकार;ना काम ना धाम,बिन

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