सुलगा हुआ जग लग रहा!
सुलगा हुआ जग लग रहा, ना जल रहा ना बुझ रहा; चेतन अचेतन सिल-सिला, पैदा किया यह जल-जला । तारन
Read Moreसुलगा हुआ जग लग रहा, ना जल रहा ना बुझ रहा; चेतन अचेतन सिल-सिला, पैदा किया यह जल-जला । तारन
Read Moreछलका रहा होगा झलक, प्रति जीव के आत्मा फलक; वह मूल से दे कर पुलक, भरता हरेक प्राणी कुहक ।
Read Moreहर एक पल कल-कल किए, भूमा प्रवाहित हो रहा; सुर छन्द में वह खो रहा, आनन्द अनुपम दे रहा ।
Read Moreप्रतिबिम्ब सूरज का प्रकट, पुलकित था दर्पण को किया; आलोक भर अद्भुत दिया, पर मूल ना देखा किया । है
Read Moreरहते हुए भी हो कहाँ, तुम जहान में दिखते कहाँ; देही यहाँ बातें यहाँ, पर सूक्ष्म मन रहते वहाँ
Read Moreझकझोरता चित चोरता, प्रति प्राण प्रण को तोलता; रख तटस्थित थिरकित चकित, सृष्टि सरोवर सरसता । संयम रखे यम के
Read Moreहर हुस्न का जो जश्न था, एक रोशनी में ढ़ल गया; हर अहं का जो बहम था, परमात्म में मिल
Read Moreसम्राट हम पैदा हुए, पर सृष्टि ना समझा किए; ना विरासत से कुछ लिये, ना विराटित हिय को किए ।
Read Moreनव आकर्षण नव नव वर्षण, नव हर्ष धरा पर तुम भर दो; चिन्तन चेतन अध्यात्म प्रखर, हर मानव जीवन में
Read Moreज़िंदगी समझ भी कहाँ आयी ज़िंदगी समझ भी कहाँ आयी, बन्दगी उनसे कहाँ हो पायी; बुझदिली दूर कहाँ उनकी हुई,
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