जगत उनके रहे हैं गत सब ही!
जगत उनके रहे हैं गत सब ही, गति उनकी में बहे हैं यों ही; ज्ञान ना कहाँ है और क्यों
Read Moreजगत उनके रहे हैं गत सब ही, गति उनकी में बहे हैं यों ही; ज्ञान ना कहाँ है और क्यों
Read Moreकोई बेचैन विश्व उनके है, रहस्य उनका कहाँ समझे है; दृष्टि उनकी है सृष्टि उनकी है, फिर भी हैरान औ
Read Moreकौरव से कर्म क्रूर करा, पाण्डव सुधा; आक्रोश रोष भव में फुरा, साधते विधा ! अर्जुन का शौर्य सूझ बूझ,
Read Moreझरने की हर झरती झलकी, पुलकी ललकी चहकी किलकी; थिरकी महकी कबहुक छलकी, क्षणिका की कूक सुनी कुहकी! कब रुक
Read Moreकितने कल्पों से संग रहा, कितने जीवन ग्रह छुड़वाया; रिश्ते नाते कितने सहसा, मोड़ा तोड़ा छोड़ा जोड़ा! परिवार सखा जीवन
Read Moreऊर्ध्व उठ देख हैं प्रचुर पाते, झाँक आवागमन बीच लेते तलों के नीचे पर न तक पाते, रहा क्या छत
Read Moreकण कण में कृष्ण क्रीड़ा किए, हर क्षण रहते; कर्षण कराके घर्षण दे, कल्मष हरते! हर राह विरह विरागों में, संग वे विचरते; हर हार विहारों की व्यथा, वे ही हैं सुधते! संस्कार हरेक करके वे क्षय, अक्षर करते; आलोक अपने घुमा फिरा, ऊर्द्ध्वित त्वरते! कारण प्रभाव हाव भाव, वे ही तो भरते; भावों अभावों देश काल, वे ही घुमाते! थक जाते राह चलते, वे ही धीर बँधाते; मँझधार बीच तारक बन, ‘मधु’ को बचाते! ✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’
Read Moreअध्यात्म की कई अवस्थाएँ हैं। शारीरिक व मानसिक स्तर पर अनेक प्रस्फुरण हैं। कुछ अवस्थाओं में कोई व्यक्ति अच्छा समाज
Read Moreतल रहे कितने अतल सृष्टि में, कहाँ आ पाते सकल द्रष्टि में मार्ग सब निकट रहे पट घट में, पहरे
Read Moreवे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं, सत्ताएँ उनके संकल्प से सृजित व समन्वित हैं; संस्थिति प्रलय लय उनके
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