मैं विपुल आयाम चल कर ! (मधुगीति १९०११३ स)
मैं विपुल आयाम चल कर, बिना व्यवधानों विचरता; चर अचर संचार कर कर, संचरित प्रकृति सुहाता ! कृति किए जो
Read Moreमैं विपुल आयाम चल कर, बिना व्यवधानों विचरता; चर अचर संचार कर कर, संचरित प्रकृति सुहाता ! कृति किए जो
Read Moreसंस्थाएँ व्यक्ति बनाते हैं जिनमें विकसित या अविकसित साहित्यकार, कलाकार, अध्यात्म पथिक, सामाजिक नेतृत्व, आदि आदि छिपा हो सकता है
Read Moreमग रहे कितने सुगम जगती में, पंचभूतों की प्रत्येक व्याप्ति में; सुषुप्ति जागृति विरक्ति में, मुक्ति अभिव्यक्ति और भुक्ति में
Read Moreव्हाट्सऐप, फ़ेसबुक, लिंकिडइन, मैसेंजर, ट्विटर, इत्यादि समूहों को हम में से बहुत से व्यक्ति अतिशय उपयोग कर रहे हैं ।
Read Moreआज अपेक्षा है कि मनुष्य सात्विक आहार कर अपने तन मन को स्वस्थ रखें ।अपने लिये उचित व आवश्यक आहार
Read Moreशून्यता कैसी व्याप्त कैसे हुई, कितनी क्यों कहाँ कब से आई रही; कितना ब्रह्माण्ड अण्ड प्रकटा किया, पिण्ड कितनों को
Read Moreउर की तरन में घूर्ण दिए, वे ही तो रहे; सम-रस बनाना वे थे चहे, हम को विलोये ! हर
Read Moreआए रहे थे कोई यहाँ, पथिक अजाने; गाए रहे थे वे ही जहान, अजब तराने ! बूझे थे कुछ न
Read Moreरश्मि आकाश जो परश करती, यान खिड़की से उझक जो जाती; बात कुछ उनके हृदय की करती, तरंगित प्राण मन
Read Moreवे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं, सत्ताएँ उनके संकल्प से सृजित व समन्वित हैं; संस्थिति प्रलय लय उनके
Read More