मधुगीति – प्रभु कृपा से अभिभूत सब !
प्रभु कृपा से अभिभूत सब, आनन्द अद्भुत पा रहे; मिल परस्पर उनसे मिले, आशीष उनका भा रहे ! रचते वही
Read Moreप्रभु कृपा से अभिभूत सब, आनन्द अद्भुत पा रहे; मिल परस्पर उनसे मिले, आशीष उनका भा रहे ! रचते वही
Read Moreआँसुओं में जब कोई मुझको लखा, दास्तानों का उदधि वरवश चखा; दीनता की मम हदों को वह तका, क्षुद्रता की
Read Moreमेरी सत्ता लगे कभी पत्ता, जाती उड़ कभी वही अलबत्ता; लखे खद्योत कभी द्योति तके, ज्योति संश्लेत कभी स्रोत लखे
Read Moreखोए ख़ुद में कभी कवि होते, भाव अपने में विचरते रहते; किसी आयाम और ही जाते, वहाँ से देखे वे
Read Moreमैं विपुल आयाम चल कर, बिना व्यवधानों विचरता; चर अचर संचार कर कर, संचरित प्रकृति सुहाता ! कृति किए जो
Read Moreसंस्थाएँ व्यक्ति बनाते हैं जिनमें विकसित या अविकसित साहित्यकार, कलाकार, अध्यात्म पथिक, सामाजिक नेतृत्व, आदि आदि छिपा हो सकता है
Read Moreमग रहे कितने सुगम जगती में, पंचभूतों की प्रत्येक व्याप्ति में; सुषुप्ति जागृति विरक्ति में, मुक्ति अभिव्यक्ति और भुक्ति में
Read Moreव्हाट्सऐप, फ़ेसबुक, लिंकिडइन, मैसेंजर, ट्विटर, इत्यादि समूहों को हम में से बहुत से व्यक्ति अतिशय उपयोग कर रहे हैं ।
Read Moreआज अपेक्षा है कि मनुष्य सात्विक आहार कर अपने तन मन को स्वस्थ रखें ।अपने लिये उचित व आवश्यक आहार
Read Moreशून्यता कैसी व्याप्त कैसे हुई, कितनी क्यों कहाँ कब से आई रही; कितना ब्रह्माण्ड अण्ड प्रकटा किया, पिण्ड कितनों को
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