Author: गोपाल बघेल 'मधु'

गीत/नवगीत

मधुगीति – मग रहे कितने सुगम जगती में

मग रहे कितने सुगम जगती में, पंचभूतों की प्रत्येक व्याप्ति में; सुषुप्ति जागृति विरक्ति में, मुक्ति अभिव्यक्ति और भुक्ति में

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