उर की तरन में घूर्ण दिए
उर की तरन में घूर्ण दिए, वे ही तो रहे; सम-रस बनाना वे थे चहे, हम को विलोये ! हर
Read Moreउर की तरन में घूर्ण दिए, वे ही तो रहे; सम-रस बनाना वे थे चहे, हम को विलोये ! हर
Read Moreआए रहे थे कोई यहाँ, पथिक अजाने; गाए रहे थे वे ही जहान, अजब तराने ! बूझे थे कुछ न
Read Moreरश्मि आकाश जो परश करती, यान खिड़की से उझक जो जाती; बात कुछ उनके हृदय की करती, तरंगित प्राण मन
Read Moreवे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं, सत्ताएँ उनके संकल्प से सृजित व समन्वित हैं; संस्थिति प्रलय लय उनके
Read Moreभारत भरत का स्वप्न बना, आज जग रहा; अरवों ही जीवनों को उठा, ज्योति विच पगा ! सम्पन्न हुए मन
Read Moreहैं वानप्रस्थी बृद्ध हुए, बिना वन गए; वालक सभी प्रयाण किए, ग्रहस्थी हुए ! ग्रह अपने वे बसाये, रहे संतति
Read Moreहैं भ्रम के जाल भरत लाल, अध-पके रहे; पहचान सके खुद को कहाँ, भटकते फिरे ! शिक्षा व दीक्षा हुई
Read Moreक्यों उपस्थित हर घट रहूँ, क्यों तटस्थित ना तट रहूँ; क्यों निहारे हर पट रहूँ, नट बनके क्यों नचता रहूँ
Read Moreअखिलता की विकल उड़ानों में, तटस्थित होने की तरन्नुम में; उपस्थित सृष्टा सामने होता, दृष्टि आ जाता कभी ना आता
Read Moreभव्य भव की गुहा में खेला किए, दिव्य संदेश सतत पाया किए; व्याप्ति विस्तार हृदय देखा किए, तृप्ति की तरंगों
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