गाय बकरा
हे ,मनुज अब नही सर्वधर्मसमभाव, देश बँट गया हूँ गाय- बकरे में -आज ! हे ,मनुज क्यू डाल रहा है
Read Moreआज भी मोतियों से आंसू आंखों से फिसल जाते हैं अक्सर! रिश्ता जो उलझे हुये मांझे की तरह कभी
Read Moreपद शोहर के पास गिरवी धरा राजनिती के गलियारो में घूंघट ओढे खड़ी महिला सरपंच हूँ – मैं ! क्या
Read Moreमैं जाति अनेक क्यूं हूं आज मेरा अस्तित्व क्या? युवाओं का भविष्य जोड़ दिया मुझसे जाने कब कहां पढ़ने वाले
Read Moreजिम्मेदारियों के बोझ तले दबा कुचला शादीशुदा पुरुष हूं मैं घर के झगड़े और आॅफिस की फाइलें खून चूस लेती
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