‘बिखरे शब्द
बिखरे शब्द बार बार दिखते थे टकराते थे मेरी कलम से फिर न जाने क्यों लौट जाते थे, शायद मैं
Read Moreबिखरे शब्द बार बार दिखते थे टकराते थे मेरी कलम से फिर न जाने क्यों लौट जाते थे, शायद मैं
Read Moreदिल तो आखिर दिल है, दिल ही दिल में कैसे पल दो पल में, क्या से क्या हो जाता है,
Read Moreसूर्यास्त का समय और संध्या काल जैसे रात को दे रहा निमंत्रण सूर्य क्षितिज में समां रहा,और तमस का हो
Read Moreदिल तो मज़बूर करता है ,पर मेरी जुबान नहीं खुलती तेरे सितम के आगे कभी , मेरी शराफत नहीं झुकती,
Read Moreकौन कहता है पैसा पेड़ पर नहीं उगता , पैसा तो पेड़ पर ही उगता है, सच्चाई की ज़मीन पर
Read Moreमैं प्यार हूँ जी हाँ मैं प्यार हूँ, दिल मेरा बसेरा है.. पर आज मैं भटक रहा हूँ यहाँ से
Read Moreयह चेहरा और यह जुबान क्यों इतने मज़बूर क्यों सच्चाई से दूर बनावटी मुस्कराहट , जुबान खामोश रहने को
Read Moreबेअदब दुनिया वाले आज उठा रहें हैं अदब का ज़नाज़ा, जिसका जितना ऊंचा कद उतना ऊंचा उठता है ज़नाज़ा ,
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