कविता

आह और वाह

वाह   वाह वाह   वाह

प्रभु , क्या जीवन पाया है

विधाता की ८४ लाख योनि

पर किसी के पास कुछ नहीं

जो मेरे पास है.

एक विकसित मस्तिष्क, जीत लिया है अंतरिक्ष

रोज़  नए पकवान, रोज़ नए परिधान

कई मेले कई त्यौहार

रहने को बंगला

शान शौकत, पैसा, बैंक बैलेंस,

मित्र ,भाई बहन,  घर परिवार

शादी , जन्मदिन की रौनक ,

वाह भाई वाह,

मनोरंजन के असीमित साधन,

सैर सपाटा , … रेल, हवाई जहाज़ .

पर यह इंसान , इतना कुछ पाकर भी..

कभी नहीं प्रभु का शुक्र गुज़ार,

और अपनी सीमित सोच से घिर कर

नफरत की आग में जल कर

ईर्ष्या और द्वेष की भावना से ग्रस्त,

केवल अपने स्वार्थ में लिप्त

असीमित खुशियों से रहता है विरक्त

और करता रहता है

आह आह  आह

—  जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845