गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

समान्त- आत, पदांत- निकली, मात्रा भार- 30
कहीं शादी की शहनाई कहिं गम की बारात निकली
किसी ने गिरा दिया डफली तो डम की आवाज निकली
शोर खुद के दामन से रुबरु होकर गुजरा अभी अभी
इक से इक मिले तमाशबिन जब नम की सौगात निकली।।

उठाकर निकले हैं भार मिलकर कुछ चिर परिचित कंधे
बलभर आजमाते रहे जिसे उसीकी औकात निकली।।

मिलते हैं कुछ पुराने चेहरे पुछने लगे पहचान
सुने जब हाल मयखाने तो तलब की आहात निकली।।

नशा काफूर हो गया है साकी के जिस्मे बदन से
प्याली बेसुध हुई जब कलाई की हालात निकली।।

बूंद बूंद को तरसने लगे बिलखते होठ यादों के
हिचकियाँ जाम टकराई जब गली की जज्बात निकली।।

गौतम देख सनम का रुतबा रूठकर जा मिला किससे
जिसपर नाज था सभी को वो झूठ की वकलात निकली।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ