कविता

पैसे का पेड़

कौन कहता है
पैसा पेड़ पर नहीं उगता ,

पैसा तो पेड़ पर ही उगता है,
सच्चाई की ज़मीन पर ,
ईमानदारी का बीज बोकर
मेहनत के पसीने से सींच क़र
पैसे कि फसल तैयार होती है,
इसे हम नेक कमाई कहते हैं
इसी के सहारे गरीब अपना,
जीवन निर्वाह करते हैं,

हाँ, एक पैसा और होता है,
यह पैसा , पेड़ पर ही उगता है,
इस पेड़ का नाम है “भ्रष्टाचार” ,
खुदगर्जी की ज़मीन पर,
बईमानी के बीज में से यह उपजता है,
लालच की खाद और मज़बूरों के खून से ,
सींच कर यह पौधा खूब पनपता है,
धीरे धेरे यह फलदार वृक्ष बन जाता है,

इसकी छाल इतनी मोटी है,
कोई फरियाद असर नहीं करती,
बस जिसकी चलती है,
बस उसी कि चलती है,
इसके फल तो “खास” आदमी ही पाता है,
गरीब आदमी तो बेचारा, मजबूरी का मारा ,
अपनी नेक कमाई में ही सब्र कर जाता है,
और यह “भ्रष्टाचार” ,के पेड़ का कमाया
कुछ दिन तो ऐशो आराम के काम आता है
पर एक दिन यह भी अपनी औकात दिखाता है,
जैसे आया था, वैसे ही चला जाता है–
दुःख दे जाता है. बहुत सताता है,
और दुनिया में बदनाम कर जाता है,
आओ मिलकर मेहनत से करें काम
सुख से जो मिले उसी में करें संतोष,
नहीं तो भ्रष्टाचार का पैसा
एक दिन उड़ा देगा सबके होश,

-जय प्रकाश भाटिया.

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845