सीमा पर तैनात और सियाचिन के जवानों को समर्पित
दुनिया की रंगरलियों से दूर जहाँ कुदरत की बजती है सरगम, ऑक्सीजन हवा में कम है फिर भी दोगुना
Read Moreदुनिया की रंगरलियों से दूर जहाँ कुदरत की बजती है सरगम, ऑक्सीजन हवा में कम है फिर भी दोगुना
Read Moreआज जंगल में अखबार आया है, समाचार पढ़ कर जंगल में मातम छाया है— जंगल का हर जानवर जैसे इंसान
Read Moreज़िंदगी जैसे एक समझौता बन कर रह गई है, अपने दिल की आरज़ू और ख्वाइशे— जैसे नदिया में बह गई
Read Moreकई बड़े कवियों को,मंच पर , एक ही गम खा जाता है, कि ‘कविता’ का रंग कैसे, हर महफ़िल में
Read Moreमेरी एक बहुत ही पुरानी रचना , शायद प्रथम प्रकाशित रचना. फिर प्रस्तुत करता हूँ.. नदी किनारे बैठे बैठे मैंने
Read Moreसूरज की किरणों के स्पर्श से खारे पानी की बूंदे, शुद्ध जल बन जाती हैं, सावन की बूंदो से, मिट्टी
Read Moreपलकों की हदों को तोड़ कर, दामन पे आ गिरा बस एक कतरा मेरे सब्र की, तौहीन कर गया ज़माने
Read Moreजहाँ होते थे पहले लहलहाते खेत आज वहां कंक्रीट के जंगल हैं पहले वहां खुले विचरते थे कुछ दुधारू पशु
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