अतृप्त मन
उतर आया था गोद में मेरी आकाश से चंद्रमा जब पहली बार, असीम आनंद की अनुभूति हुई थी नारी से
Read Moreबोया था मैंने एक बीज अपने आंगन के कोने में, लगे कई वर्ष अंकुरित होकर उसे बड़ा होने में। धीरे
Read More“स्त्री श्रमिक” तपती हूं मैं भी भरी दुपहरी में बहाती हूं स्वेद तन से, भीगती हूं बारिश में मैं भी
Read Moreशरीर बसा दूर देश में किंतु मन में बसा हिंद के गांव है, जहां की बोली में सरलता और जीवन
Read Moreसुन लो पुकार मेरी, कहती है राधा बेचारी। अब न बनूंगी मैं राधा, बनके राधा मैं हारी।। सुनो हे गिरधारी
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