सूनापन
सूना सूना मन लगता है, कहीं न अपनापन लगता है। घर के जिस कोने में झाँकूं, वहां अज़ानापन लगता है। क्यूँ
Read Moreकाश तुमसे न मैं मिला होता, दर्द दिल में न फिर पला होता। रौनकों की कमी न दुनिया में, एक
Read Moreज़िंदगी कुछ ख़फ़ा सी लगती है, रोज़ देती सजा सी लगती है। रौनकें सुबह की हैं कुछ फीकी, शाम भी
Read Moreइंतज़ार हर साल तुम्हारा, सेंटा क्लॉज है लगता प्यारा। सुन्दर लाल चमकता चोंगा, श्वेत वर्फ़ सी प्यारी दाढ़ी। उपहारों की
Read Moreअहसासों के सूने जंगल में ढूंढ रहा वे अहसास जो हो गये गुम जीवन में जाने किस मोड़ पर.
Read Moreअहिल्या की तरह शिला बनी जनता सहती रही शीत, ताप, वर्षा, कितने शासक आये कितने गये किसी ने सताया किसी
Read Moreक्या मैं सदैव सत्य बोलता हूँ? बोल पाता हूँ? क्यूँ ? एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर आसान भी है और बहुत कठिन भी. बहुत आसान
Read Moreअप्रैल माह रविवार की एक भीगी भीगी सी सुबह थी. खिड़की से बाहर झांकती सुमन बोली ‘रमेश, बाहर देखो कितना
Read Moreपहले हर अधरों को मुस्कानें दे दूँ मैं, फिर सूनी मांग तेरी तारों से भर दूँगा. वासंती आँचल का
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