ग़ज़ल- “वो एक पल”
वो कितना सुखमय अवसर था. हम दोनों का मौन मुखर था शब्दों ने चुप्पी साधी थी, बोल रहा अक्षर-अक्षर था.
Read Moreवो कितना सुखमय अवसर था. हम दोनों का मौन मुखर था शब्दों ने चुप्पी साधी थी, बोल रहा अक्षर-अक्षर था.
Read Moreआसमान में सूरज-चंदा और सितारे हैं देखो-देखो दोस्त हमारे कितने सारे हैं एक बार भी कभी किसी ने हमें नहीं
Read Moreकैसे मेरी रातें कटतीं कैसे दिन ढलता है. पहले उसे पता था अब क्यों पता नहीं चलता है. जनम-जनम तक
Read Moreनहीं मायूस अब हम हो रहे हैं. हमारे अश्क शबनम हो रहे हैं. ख़ुशी आँखों में जो देखी ग़मों ने,
Read Moreमाँ गीता के श्लोक सरीखी मानस की चौपाई है. माँ की ममता की समता में पर्वत लगता राई है. घर की
Read Moreअपना होकर भी जब उसने साथ निभाना छोड़ दिया. मेरे गीतों-ग़ज़लों ने भी उसको गाना छोड़ दिया. साक़ी ने मै
Read Moreकहीं और हम चले गये हैं लोग झूठ कहते है देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते हैं घर
Read Moreजब तक हम तनहा थे लगता था दीवारो-दर हैं. जब से साथ तुम्हारा पाया हमको लगता हम घर हैं. ऐसी
Read Moreकहीं और हम चले गये हैं लोग झूठ कहते है देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते हैं घर
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