शायरी मिल गई
तुमसे मिलकर मुझे यों ख़ुशी मिल गई. ज़िंदगी को नई जिंदगी मिल गई. मुझको ऐसा लगा इक ख़जाना मिला, वर्षों
Read Moreतुमसे मिलकर मुझे यों ख़ुशी मिल गई. ज़िंदगी को नई जिंदगी मिल गई. मुझको ऐसा लगा इक ख़जाना मिला, वर्षों
Read Moreगुमसुम-गुमसुम रहते हो क्यों? दिल की बात न कहते हो क्यों? अपनों सँग संकोची बनकर ऐसे नहीं जिया जाता है.
Read Moreरिश्तों के पुल टूट गये हैं. तट ने कितने जख़्म सहे हैं. उसका सच भी झूठा लगता, उसने इतने
Read Moreचलो कहीं बैठें, कुछ गायें. थोड़ा सा ख़ुद से बतियायें. इस चक्कर में उस चक्कर में. कितना भटके रोज़ सफ़र
Read More6 जून 2017 को सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गेनाईजेशन, नई दिल्ली में “सुलभ इंडिया” के सहसंपादक डॉ. अशोक ज्योति जी
Read Moreकब चाहते हैं पूजो भगवान की तरह से इंसान हैं तो चाहो इंसान की तरह से अख़बार हम नहीं हैं
Read Moreचलो वहाँ तक साथ निभायें. चलो वहाँ तक साथ निभायें. जहाँ अमा की रात न आये, जहाँ न सूरज तपे-तपाये.
Read Moreआपका जो भी ख़ास होता है दूर होकर भी पास होता है. वो ही बस वो ही याद आता है,
Read Moreमानता हूँ शख़्स वो झूठा नहीं है पर वो सच्चा है तो क्यों कहता नहीं है है जहाँ धोखा तो
Read Moreदर्द अगर ना हँसकर गाते. इतनी ख़ुशियाँ कैसे पाते. छूट चुकी थी गाड़ी तो फिर, नाहक क्यों हम दौड़ लगाते.
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