गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल-*****मेहमान की तरह से*****

कब चाहते हैं पूजो भगवान की तरह से

इंसान हैं तो चाहो इंसान की तरह से

अख़बार हम नहीं हैं जो पढ़ के फेंक दोगे,
हमको पढ़ो हमेशा दीवान की तरह से

आँधी के तेवरों की चिंता नहीं है हमको,
रखते हैं हम भी तेवर तूफान की तरह से

उसने कहा था हमसे जो काम कर ही देते,
लेकिन कहा था उसने फ़रमान की तरह से

प्यासे को पानी देना है अच्छी बात लेकिन,
पानी उसे न दें हम अहसान की तरह से

सम्मान कोई किसको अच्छा नहीं लगेगा,
सम्मान पर मिले तो सम्मान की तरह से

पैसे के हों न हों हम पर बात के धनी हैं,
धनवान से भी मिलते धनवान की तरह से

कविता ने बाँध दी है पैरों में दौड़ ऐसी,
घर आते, लौट जाते मेहमान की तरह से

डॉ कमलेश द्विवेदी