मुक्तक
जब कभी थे काम के, कद्र अपनी थी बहुत, गर्दिशों का दौर आया, हासिए पर हैं बहुत। कर दिया हमको
Read Moreसमझ सका ना कोई पीड़ा, पुरुष के मन की, दो पाटों के बीच पिस रहे, पुरुष के मन की। अपनी
Read More5 सितंबर 1888- 17अप्रैल 1975 सर्वपल्ली नाम गाँव का, वीरास्वामी पिता का नाम, सीताम्मा माता उनकी, राधाकृष्णन खुद का नाम।
Read Moreनहीं जानता गीत किसे कहते हैं, छंदों की हो रीत, मीत किसे कहते हैं? क्या छंद बिना कोई भावों को
Read Moreखुद के भीतर झॉंक सको, तो झॉंको तो, सभी प्रश्नों के हल भीतर, तुम झांको तो। कौन है अपना कौन
Read Moreबहुत हो चुका इन्डिया इन्डिया, अब भारत की बात हो, झेल चुके अपमान बहुत, अब स्वाभिमान की बात हो। जातिवाद
Read Moreकिसने कहा कि बारूद से, प्रदूषण फैलता है, किसने कहा कि आवाज़ से, प्रदूषण फैलता है? रूस युक्रेन युद्ध से
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