मुक्तक
झूठ के पाँव नही होते, सुना था हमने,साँच को आँच नही, यह गुना था हमने।करते गुमराह कुछ, दिन को रात
Read Moreधूप में जलते हैं खुद और पाँव में छाले पड़े,चलते रहें रात दिन, जितना भी चलना पड़े।चिन्ता यही रहती है
Read Moreराष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन द्वारा होली के पावन पर्व पर एक आभासी अखिल भारतीय काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
Read Moreबदलेगा नव वर्ष नया संवत आयेगा, कुदरत में भी रंग नया दिख जायेगा। चहकें चिड़िया और परिन्दे नीलगगन, कली- कली
Read Moreबहन बेटियों के सिर आँचल, भूली बिसरी बात हुई, पनघट से पानी भर लाना, अब भूली बिसरी बात हुई। शाम
Read Moreअगर हमने नहीं बोली, तो कोई क्या कहेगा, कोई पिछड़ा- अहंकारी, कट्टर हिन्दू कहेगा। कह रहे हमको, सभी का सम्मान
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