खिलने दो पुष्पों को…
तुम्हारे आंसुओ को छत पर रख आया हूँ सुख को उतरने दो ..धुप की तरह सीढियों से आंगन तक
Read Moreतुम्हारे आंसुओ को छत पर रख आया हूँ सुख को उतरने दो ..धुप की तरह सीढियों से आंगन तक
Read Moreदो रस्सियों सा गूँथ कर इक मजबूत और अटूट डोर बन जायें ज़मीं आसमाँ सा मिलकर क्षितिज का आखरी
Read Moreतुम्हारी ख़ामोशी की फैली हैं चांदनी उससे आलोकित हैं मेरे मन का गगन नि:शब्द हैं नि:स्वर हैं यह मनोरम
Read Moreएक बरगद का वृक्ष उसके नीचे बैठे हुए लोग एल फावड़ा एक गैती एल सब्बल आस पास दूर दूर
Read Moreधरती के इस बहुत प्राचीन मन्दिर के भीतर जर्जर हो चुके अंधेरो मे उतरकर सीढ़ियाँ गर्भालय में उजालो की हो
Read Moreरश्मियों की स्वर्णिम पत्तियों से आच्छादित है विचारों के बादल झांकता मन के अम्बर के सतरंगे झरोखों से ममता
Read Moreकविता लिखने की मुझे तो है आदत इसी बहाने कर लिया करता हूँ रोज तुम्हारी इबादत तुम्हारे सौन्दर्य से
Read Moreतुम्हारी मुस्कराहट धुप की तरह दिन -भर मेरे साथ रहती है बिखरा -बिखरा हवा की तरह अब नही घूमता
Read Moreउनसे करना बात अच्छा लगता है उनके रहना साथ अच्छा लगता है जिंदगी तो अकेले ही कट जायगी उनसे
Read Moreहम सब एक ही सत्य की नदी के आईने मे प्रगट हुए है … अनेक प्रतिबिम्ब जैसे मन क्षण क्षण
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