मैं बाक़ायदा….
मैं बाक़ायदा सृजित आकार नहीं हूँ नवरस हूँ सिर्फ़ छन्द अलंकार नहीं हूँ केवल परहन ए जिस्म न समझना मुझे
Read Moreमैं बाक़ायदा सृजित आकार नहीं हूँ नवरस हूँ सिर्फ़ छन्द अलंकार नहीं हूँ केवल परहन ए जिस्म न समझना मुझे
Read Moreपल भरमे …….. हां बहुत कुछ हुआ इस बीच मुझे पटरिया समझ कर वक्त ,कई रेलों की तरह मुझ पर
Read Moreमेरे लिए खूबसूरती का मतलब तुम हो चाहे ओस से भींगा रह गया गुलाब का अब तक एक फूल हो
Read Moreतपती दोपहरी में .. जड़े सोचती होंगी टहनी के शीर्ष पर किसी भी हालत में मुझे कल सुबह खिलाना हैं
Read Moreआधी रात हो गयी …है … मै सो नही पा रहा हूँ भागते हुए ट्रेन की – एक बोगी की
Read Moreचुभते हुऐ इंतज़ार के काँटों में गुलाब सा तुम खिले हो छिटकी हुई यादों की चाँदनी में माहताब सा
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