धर्म और नैतिकता
‘धर्म’ शब्द धृञ् धारणे धातु से ‘मन’ प्रत्यय करके निष्पन्न होता है। इसका अर्थ है-धारण, पोषण और रक्षा करना। इसलिए
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Read Moreसमस्त जीवधारियों में मनुष्य को श्रेष्ठ माना गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि हे पुरुष, यह जीवन उन्नति
Read Moreशास्त्रों में तीन प्रकार के दुःख बताए गए हैं- आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक। आधिभौतिक दुःख अत्याचारी मनुष्यों और हिंसक पशुओं
Read Moreसंकल्प शब्द सम् तथा कल्प से मिलकर बना है। सम् का अर्थ है सम्यक्-अच्छी प्रकार। कल्प का अर्थ है निर्णय,
Read Moreहमारा व्यक्तित्व विचार और चिन्तन से बनता है। यह जीवन भर के चिन्तन और समस्त विचारों का प्रतिफल होता है।
Read Moreनारी और पुरुष समाज रूपी रथ के दो पहिये हैं। दोनों के सांमजस्य से संसार में जीवंतता का संगीत सुनाई
Read Moreतप का अर्थ है- पीड़ा सहना, घोर कड़ी साधना करना, मन का संयम रखना आदि। महर्षि दयानन्द के अनुसार ‘‘जिस
Read Moreअस्तेय का अर्थ है– चोरी न करना। किसी वस्तु को बिना मूल्य चुकाए या परिश्रम किए बिना प्राप्त करना भी
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