धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

अध्यात्म रोग

शास्त्रों में तीन प्रकार के दुःख बताए गए हैं- आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक। आधिभौतिक दुःख अत्याचारी मनुष्यों और हिंसक पशुओं आदि से उत्पन्न होते हैं। आधिदैविक दुःख अति वृष्टि, आंधी, भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न होते हैं। आध्यात्मिक दुःखों या अध्यात्म रोगों में मन, इन्द्रिय, शरीर आदि के दुःखों का समावेश होता है। भगवद्गीता में कहा गया है कि काम, क्रोध और लोभ आत्मा को दुःख रूपी नरक में ले जाने वाले तीन दोष हैं। इनके साथ एक चैथा दोष मोह है जो दोषों की संख्या में अन्तिम परन्तु महत्ता में प्रथम है। इन चारों दोषों को दोष चतुष्टय कहा जाता है। काम के अन्तर्गत विषय, मद्यपान, अब्रह्मचर्य आदि रोग हैं। कठोरता, अत्यन्त रोष, हिंसक प्रवृत्ति आदि क्रोधजन्य रोेग हैं जो संसार में अशांति, मारकाट और युद्धों को जन्म देते हैं। लोभजन्य दोषों में परशोषण, चोरी, डकैती, स्वार्थपरता हैं जो संसार की अधिकतर सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का मूल कारण हैं। मोह से स्मृति का लोप, स्मृति का नाश होने से विचार बुद्धि का नाश ओर बुद्धि के नष्ट हो जाने पर मनुष्य पशु बन जाता है।
मनुष्य के चरित्र के निर्माण में के कई कारण सहायक होते हैं। इन कारणों में संस्कार, वातावरण, शिक्षा, संगति आदि मुख्य हैं। इन अध्यात्म रोगों को दूर करने के लिए मूल कारणों पर विचार करते हुए उज्ज्वल चरित्र निर्माण करते हुए संस्कारों को परिमार्जित किया जा सकता है। मनुष्य के प्रथम गुरु माता-पिता और आचार्य हैं। सर्व प्रथम इन्हें स्वयं संस्कारित होकर ‘मातृमान् पितृमान् आचार्यमान्’ के गुणों के अनुसार बनना होगा और उसी के अनुरूप बच्चों को संसकार देने होंगे। शिक्षा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उचित शिक्षा, मननशीलता, ज्ञान, विवेक और दक्षता के गुणों से मनुष्य जीवन सफल बनाया जा सकता है। सत्संग और स्वाध्याय से मनुष्य जीवन में शुचिता और विनयशीलता के गुण उत्पन्न होते हैं। मनुस्मृति में भी कहा गया है कि विद्या और तप से मनुष्य की आत्मा और बुद्धि ज्ञान से शुद्ध होती है।

कृष्ण कांत  वैदिक

2 thoughts on “अध्यात्म रोग

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख.
    तुलसीदास जी ने इनको मानस रोग कहा है-
    सुनहु तात अब मानस रोगा. जिनते दुख पावहिं सब लोगा.
    मोह सकल व्याधिन कर मूला. तेहि ते पुनि उपजहिं बहु शूला.
    काम बात, कफ लोभ अपारा. क्रोध पित्त नित छाती जारा.
    प्रीति करहिं जो तीनिउ भाई. उपजइ सन्यपात दुखदाई.

  • Man Mohan Kumar Arya

    प्रशंसनीय विचार व लेख। बधाई।

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