सामाजिक

नारी का सम्मान

नारी और पुरुष समाज रूपी रथ के दो पहिये हैं। दोनों के सांमजस्य से संसार में जीवंतता का संगीत सुनाई देता है। उसका यशगान भारतीय संस्कृति में सदा से होता रहा है। नारी की महिमा का गान मनु, वेदव्यास, याज्ञवल्क्य, पाराशर आदि ऋषियों ने अपने ग्रन्थों में किया है परन्तु इसका मूलस्रोत वेद-संहिताएं हैं। वेद की नारी अतिविशिष्ट, साध्वी, विनम्र, शीलवती, प्रकाशवती, मेधावी, श्रद्धामयी, तपोमयी, व्रतनिष्ठा और धर्मष्ठिा है। ऋग्वेद में कहा गया है कि अखंडिता, अदीना, अक्षतरूप से भरण पोषण करने वाली, अतिशय प्यारी दिव्य गुणी मां तुम विदुषी, सुखदाता ओर कल्याणकारी हो, तुम दिव्यगुणों से युक्त पुत्रों के साथ आओ अर्थात् उत्तम गुणों से युक्त सन्तान पैदा करो। मनुस्मृति में कहा गया है कि जिस समाज में नारी का उचित सत्कार, मान और प्रतिष्ठा की जाती है वहां दिव्य भोग और उत्तम गुणों वाली सन्तान होती है।

वेदादि शास्त्रों में नारी के सम्मान में अनेक गाथाएं भरी पड़ी हैं, परन्तु भौतिकता की दौड़ में , विशेष कर विदेशी शासन काल के बाद नारी की दशा में गिरावट आई है। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, महर्षि दयानन्द सरस्वती औेर ज्योतिबा फुले आदि समाज सेवियों ने स्त्री-शिक्षा, बाल-विवाह का विरोध, सती-प्रथा का अन्त और विधवा पुर्विवाह के लिए आन्दोलन चला कर अथक प्रयास किए जिसके फलस्वरूप नारी अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त करने में काफी हद तक सफल हुई है। आज की परिस्थितियों को देखते हुए नारी को अधिक शक्तिशाली बनना होगा। नारी उत्पीड़न के मामलों में कठोरतम दण्ड दिया जाना चाहिए। माता-पिता, आचार्य और परिवार के लोग बच्चों को नैतिक शिक्षा दें, जिससे उनमें सत्य, अहिंसा, दया, करुणा, प्रेम, दुर्गुणों से दूर रहने की प्रवृत्ति और सद्गुण उत्पन्न हों। वे बड़ों का सम्मान सीखें। समाज में चारित्रिक पवित्रता और समरसता लाकर नारी के प्राचीन गौरव को हम दोबारा स्थापित कर सकते हैं।

कृष्ण कान्त वैदिक

One thought on “नारी का सम्मान

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख. हमारे पूर्वजों का वचन है कि जहां नारियों की पूजा की जाती है वहीँ देवता निवास करते हैं.

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