Author: *मदन मोहन सक्सेना

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : ये रिश्ते काँच से नाजुक

ये रिश्ते काँच से नाजुक जरा सी चोट पर टूटे बिना रिश्तों के क्या जीवन, रिश्तों को संभालो तुम जिसे

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