Author: *मदन मोहन सक्सेना

लेख

करवा चौथ : परम्पराओं का पालन या अँधविश्वास का खेल

करवाचौथ के दिन भारतवर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपवास रखती है. पति पत्नी का रिश्ता

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मुक्तक/दोहा

मुक्तक (सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं)

रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं प्यार

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल ( क्या जज्बात की कीमत चंद महीने के लिए है )

दर्द को अपने से कभी रुखसत ना कीजिये क्योंकि दर्द का सहारा तो जीने के लिए है पी करके मर्जे

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कविता

अर्थ का अनर्थ (अब तो आ कान्हा जाओ)

कृष्ण जन्माष्टमी बिशेष अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए दुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : समय से कौन जीता है समय ने खेल खेले हैं

अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही साये में ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं भुला पायेंगें

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