एक आदमी अपने रास्ते से गुजर रहा था | सड़क के दोनों किनारों पर आम के बहुत से बाग फलों से लदकर जमीन को छू रहें थे | फल के बावजूद बागों में चहल-पहल न देख उसे आश्चर्य लगा | बागों में कोई रखवार नहीं, कोई बाड़ नही, फिर यह बगिया अपने आप […]
Author: *महातम मिश्र
मधुशाला
ना जाने कब क्या कर बैठे, अपने मन की है ज्वाला यारों देखों शान्त न होती, पी पी कर इसकी हाला हवस हंसीली नारी नठीली, पिए अमृत भरि-भरि प्याला चितवन चटकाय कलंकन बिच, नाचे नचवाये मधुशाला || उपहास करार करें पल में, नटी जाय नचाय विरह बाला मुसुकाय चलें रहिया ठिठकें, भरमाय गले पहिरें माला […]
माँ तेरा दर्शन
खुली आँख से जग को देखा, जब बंद हुई तो आई माँ | सूरज की पहली किरणों में, देखी तेरी परछाई माँ || रिश्ते-नाते सब बदल रहे, अब घर भी बदला लगता है | हर मूरत बदली बिन तेरे, मंदिर भी बदला लगता है || बाबु जो नाम दिया तुमने, तेरे बिन कोई नहीं बुलाता है | […]
“धरती पुत्र”
हल नित कहें किसान से, हलधर मेरे मित्र धरती को मै चिरता, अरु धरा बिखेरे इत्र || कलम कहें कविराय से, मुझे लगाओ हाथ ज्ञानपिपासु शब्द तुम, रहों श्रृष्टि के साथ || हल और कलम समान हैं, दोनों रखते धार श्रृजन हमारें अंग हैं, बस कृपा करें करतार || हम तुम दोनों दो पथिक, अलग-अलग […]
बेजुबान घुटन
आदमी में हलकी सी मुस्कान देखीं मैंने परायों संग उभरी हुयी पहचान देखीं मैंने | अपनों से तनिक कटके महफ़िल क्या बैठी खूब गैरों की मीठी जुबान देखी मैंने || मन, मन की चाहत जाने है बेहतर हर शय हर आँगन में एक ही खबर चहलकदमी खूब है पुरानी गली में सजी-संवरी नुक्कड़ पर दुकान […]
एक मुट्ठी बीडी
मानू और छानू दोनों बचपन के मित्र हैं | लेकिन दोनों की सोंच और विचारधाराओं में जमीन-आसमान का अंतर है | मानू हर बात को गंभीरता से सकारात्मक रूप में लेता है तो छानू नकारात्मक व लापरवाह है | मानू हर कदम पर अच्छाई को देखता-परखता है वहीँ छानू हर चीज में बुराई देखता है […]
अहिवाती धरती
मै अहिवाती धरती हूँ, मुझे बेवा तो न बनाइये मेरा सुहाग है हरियाली, सूनी मांग तो न बनाइये मै ही माँ की ममता हूँ, हर जीव-जंतु की जननी हूँ श्रृंगार न मेरा रंजित हो, मुझे बंजर तो न बनाइये मै धरती हूँ फलित कोख, मुझे बंध्या तो न बनाइये इस सत्य-सनातन नारी को, कलुषित तो […]