पावस ऋतु
तपन भरी थी जेठ दोपहरी, हाँफ रहे नर पशु पक्षी | झील सरोवर सूख रहे थे,प्यासी -प्यासी यह धरती |
Read Moreअप्रैल का महीना और गर्मी का ये आलम ,शीला का गर्मी के मारे बुरा हाल था | “सुनो जी !
Read Moreदरश की लालसा मोहन के जब तक साँस बाक़ी है | पियूँ नित नाम रस प्याला मिलन की प्यास बाक़ी
Read Moreप्यार और स्वार्थ कुछ महीनों से छवि और निलय आर्थिक तंगी के बुरे दौर से गुजर रहे थे | हर
Read Moreप्रकाश की ओर बौद्धिक तत्वों से उलझती रही आव्रत्त… समझ नही पायी , संसार के भ्र्मजाल को | जहाँ सत्य
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