कहानी

इंसानियत अभी ज़िंदा है

इन्सानियत अभी ज़िंदा है
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शारदा उदय होते सूरज को नम आँखो से देख रही थी शुभ भी उसके पास बैठा था |
शारदा बोलती ही जा रही थी , असंख्य रश्मियों के साथ तुम नित्य उदीयमान हो सकल संसार को प्रकाशित करते हो किंतु मेरे जीवन का तमस कभी समाप्त नहीं होता |
क्यों प्रभू ? क्यों sssss ? 24 वर्षों में दर्द से सिक्त रोटी ही खाई है मैने सुख का भोग कैसा होता है जाना ही नहीं | पिता के बाद पति ही स्त्री का पालन हार होता है पर यहाँ तो पुत्र और पति दोनो को पालते पालते उम्र आधी हो गई |
बेटा ! “पिता तो अनपढ़ थे तुमने तो बी .कोम में टाप किया है | कम्पटीशन की तैयारी के साथ साथ छोटी मोटी नौकरी ढूँढ लो तो जीवन का अँधेरा कुछ कम हो सके “| शुभ उठ कर चल देता है | जैसे उसे कुछ नागवार गुजरा हो |
“माँ ओ माँ ! पापा की तबियत बहुत खराब हो रही है कुछ किया ना गया तो कुछ भी हो सकता है “| इस समय तो घर में एक फूटी कौडी भी नहीं है अस्पताल कैसे ले चलें बेटा | कभी ना रोने वाली शारदा भी आज फफक पड़ती है | घर में चार -चार हट्टे कट्टे मुस्टन्डे भाई पर सब के सब स्वार्थी ,कोई मदद को नही आया |शारदा का भी सात भाई बहन का परिवार पर सभी का खून पानी हो चुका था | इधर अजय के हालात बिगड़ते जा रहे थे तभी शारदा को अपनी छोटी बहन याद आती है | वह उसको फोन मिलवाती है फ़ोन सुनते ही विनय तुरंत आते हैं और अजय को सरकारी अस्पताल में दाखिल कराते हैं | परीक्षण के बाद पता चलता है की शरीर में खून ही नहीं है इलाज शुरू होने से पहले 3 यूनिट खून चढाना होगा |शारदा के सर पर पहाड़ टूट पड़ता है | रक्त दान करने वाला कोई नहीं था शारदा और शुभ ही रक्त दान के लिये आगे आये पर !! वो दोंनो स्वयं रक्तल्पता के शिकार थे इस लिये उन्हे डाक्टर ने इस कार्य के लिये मना कर दिया गया था |
हालात बिगड़ते जा रहे थे विचित्र परिवार , विचित्र ससुराल जहाँ प्रत्येक का खून पानी हो गया था |
शारदा बिलख उठती है | आँसू थमने का नाम नही लि रहे थे | शुभ वार्ड में पिता का हाथ ठामे बैठा था तभी नर्स आकर खून की बोतल लगाती है | शुभ की खुशी का ठिकाना नहीं था | वाह दौड़ कर बाहर आता है और चिल्लाता है माँ sssss ! अब पापा को कुछ नहीं होगा पापा को खून चढ रहा है | पर !!!!! पर!!!!
ये सब छोड़ो अंदर चलो | रक्त की बूँदें शरीर में प्रवेश कर चुकी थी | जीवन ज्योति प्रज्ज्व्लित हो चुकी थी|
तभी विनय और विनी सामने खडे मुस्करा रहे थे | शारदा निशब्द हो दोनो के पास मौन खड़ी हो
जाती है |
विनय बोल पड़ता है “भाभी जी अभी भी कुछ – कुछ इन्सानियत ज़िंदा है “| रक्त दान से बड़ा दान और क्या हो सकता है भला ????????????
©®मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016