मन आशा की मूरत जिसका आज निराशा छाई कैसे | दिल में इतना प्यार संजोए फ़िर ये नफ़रत पाई कैसे | पल- पल होती रही उपेक्षित सहती है रूसवाई कैसे | नारी मन की यह पावनता है इतनी गहराई कैसे | है निश्छल मन की अनुरागी करता तू निठुराई कैसे | करती सौ सौ जनम […]
Author: *मंजूषा श्रीवास्तव
कविता – आतंकवाद
उमड़ता – घुमड़ता जहन में है प्रश्न आतंक के जहर से , विशाक्त होता जन-जीवन , जुनून ; सब कुछ तहस -नहस करने का | हर तरफ़ अनकहा डर , खौफ़ क्यों ? किसान , मजदूर और जवानों की परिस्थिति , सरहदों पर खिची लकीरें लहू की , श्रष्टि की सुंदरता को कर रहा विनष्ट […]
कविता – सावन घन
पुलकित है प्यासा मन नाच उठा अंतर मन बरसे यह सावन घन उमड़ घुमड़ बरसे|| मेघों से याचक बन देखो प्रेमी चातक स्वाती की एक बूँद माँग रहा कबसे|| बरसे अविरल बादल नेह के आँगन आँगन प्रियतम की प्रीत संग तन – मन सब भीगे || वह छूटा बचपन उपवन है स्म्रतियों का कागज की […]
मुक्तक – सरस नीर भी अब खतम हो रहा है
(१) प्रकृति के क्षरण से तड़पती है धरती | नयन नीर सूखा सिसकती है धरती | न वन हैं घनेरे न पर्वत बचे हैं – नहीं नीर संचित्व दरकती है धरती | (२) तपन से धरा आज जलने लगी है | भरी प्यास से अब दरकने लगी है | हुआ घट भी खाली मिटे तिशनगी […]
प्रेरणा गीत – फूल
रंग – बिरंगे सुंदर कोमल , लहराते बलखाते फूल | बाग – बगीचे की शोभा को हरदम खूब बढाते फूल | भेद नही दिखलाते हैं यह हो अमीर या हो निर्धन | अपनी महक लुटाते सब पर, मन सबका हर्षाते फूल | ईश्वर के चरणो पर चढ कर , मन ही मन हर्षित होते | […]
बाल कविता – चन्दा मामा
चंदा मामा रूप तुम्हारा मुझे लुभाया करता है | घटना- बढना निश दिन तेरा मुझ में अचरज भरता है | टिम टिम करते तारों में तुम बड़े सुहाने लगते हो | गोल गोल जब हो जाते हो थाल सरीखे दिखते हो | तब दिखती एक बुढ़िया तुममें बैठी छाया पेड़ तले | कौतूहल मन में […]
लघु कथा – प्यार और स्वार्थ
कुछ महीनों से छवि और निलय आर्थिक तंगी के बुरे दौर से गुजर रहे थे. हर तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आरहा था. घर खर्च तो सही से चल नहीं पा रहा था, उस पर दवाई का खर्च और आ गया. छवि निलय को चाय देते हुए – “कैसे होगा ? क्या होगा ? कुछ […]
दोहे
योग ब्रह्म मुहूरत जो उठे ,और करे नित योग | प्राण वायु करते ग्रहण , नहीं सतावे रोग || प्रात: की बेला मधुर , बहे सुवासित वायु | तन मन ऊर्जावान हो, और बढ़ावे आयु || नित्य योग अपनाइये , काया रहे निरोग | मिट जायेंगे दोष सब , भागे जड़ से रोग|| योग सरीखे […]
मत्तगयंद सवैया
मधु सूदन मुरली धर मोहन , बृज को काहे बिसराय दियो | मन प्राण निकाल चले मथुरा , यह देह निठुर बिसराय दियो | बृषभानु दुलारी के हिय में , मनमोहन की छवि आनि सखी | चितचोर चुराय लियो चित को , अब चैन नही दिन रात सखी | बिरही लागे संसार सकल , हर […]
गज़ल
गम छुपा कर सदा मुस्कुराते रहे | प्रीत की रीत हँस कर निभाते रहे | ना उमीदी का दामन न थामा कभी – राह काँटो में अपनी बनाते रहे | आज़माना गलत बात है प्यार में – प्यार को प्यार पर बस लुटाते रहे | रुक न जाए कहीं ज़िन्दगी का सफर – हर कदम […]