रोला छंद
रोला छन्द तीन मुक्तक (1) जीवन के पल चार ,सदा खुश होकर जी लो अधरों की मुसकान ,बाँट कर खुशियाँ
Read Moreपौधों से प्रेम गीतिका को पेड़- पौधों से विशेष लगाव था| कोई बेवजह पौधों को नुकसान पहुंचाए उसे बेहद नागवार
Read Moreशिक्षा का महत्व सन्तोष ! मीना और अपने बच्चों के साथ खुश था किसी चीज की कोई कमीं नहीं थी
Read Moreधर्मधारा टन -टन -टन बाइस्कोप वाला आया तमाशा देखो आओ बच्चो कठपुतली का खेल देखो की आवाज सुनते ही मोहल्ले
Read Moreसुमन की चहकन से घर का कोना कोना चहका करता था |विवाह के बाद घर सूना हो गया एक उदासी
Read Moreज़िन्दगी की राह में हों असंख्य अड़चने | दुःख के पहाड़ हों या की दर्द हों घने | तू नहीं
Read Moreमैं हूँ किसान मैं धरा पुत्र मैं हूँ किसान माँ के आँचल से लिपटा रह पोशित करता सारा जाहान मैं
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