प्रकृति और मैं
प्रकृति का अनुभव राजगीर की पहाडियाँकुछ ऊँची कुछ नीचीछवि शाली तरूपुष्प पल्लव सेसमलंक्रतशुशोभित हो मेरे मानस को कर रहेहैं झंकृतवर्षा
Read Moreप्रकृति का अनुभव राजगीर की पहाडियाँकुछ ऊँची कुछ नीचीछवि शाली तरूपुष्प पल्लव सेसमलंक्रतशुशोभित हो मेरे मानस को कर रहेहैं झंकृतवर्षा
Read Moreज़िंदगी के फलसफ़े को आजमाना चाहियेसुख मिले या दुख हमें बस मुस्कराना चाहिये हर तरफ़ खुशियाँ बरसती हों कहाँ तक
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