साहस शौर्य शक्ति की प्रतिमा, नारी का जग पर उपकार दुर्गा लक्ष्मी राजपुतानी, की गाथाये कहें पुकार जग को जीवन देने वाली, जिससे है जग में पहचान त्याग तपस्या की मूरत सी, नारी जग का है आधार लक्ष्मी बाई, दुर्गा बन कर, करे शत्रुओं का संहार विकट परिस्थितियाँ हों चाहें, करती नहीं हार स्वीकार मानव […]
Author: *मंजूषा श्रीवास्तव
फूल पर तीन कविताएं
1) फूल की बात ************ कंटकों में फूल मुस्काता हुआ यह कह रहा है , प्रकृति हो सुर्भित इसी से इस चुभन को सह रहा हूँ | आँधियों में ताप में पतझाड़ की इस मार को सह, मैं पुन: मधुमास लाने के लिये ही जी रहा हूँ | खार के संग पल रहा हूँ मुस्कराकर […]
कहानी – सुगंध
सात भाई – बहन में सबसे छोटी गायत्री घर में सबकी लाड़ली थी| घर का काम- काज तो उसे कभी करना ही नहीं पड़ा | समय के साथ-साथ वह भी बड़ी हो रही थी |पर अभीभी वही ढंग था जीने का वही पुरानी दिनचर्या मौज – मस्ती , पढना , खेलना बस| धीरे- धीरे तीन […]
पहचान (लघु कथा )
पहचान (लघु कथा ) मीरा उठ दिन चढ आया | कबतक सोती रहेगी जा बबलू को स्कूल छोड़ आ |माँ मुझे भी स्कूल जाना है ,मेरा भी बस्ता ला दे| “अरे करम जली चुप रह !बापू सुन लेंगे तो अनर्थ हो जाएगा “| लड़किया तो चुल्हे चौके के लिये ही बनी है | माँ……… मै […]
मंजूषा श्रीवास्तव को महादेवी वर्मा सम्मान
दिनांक 13 नवंबर 2022 महिला रचनाकारों की प्रेरणास्रोत महान कवयित्री “महादेवी वर्मा की पुण्य स्मृति में #अंतर्राष्ट्रीय महिला मंच द्वारा महिला कवयित्री सम्मेलन एवं रचनाकारों के “प्रोत्साहन हेतु संचालित “निशुल्क प्रकाशन योजना” के अंतर्गत मंच के संस्थापक / अध्यक्ष राघवेन्द्र ठाकुर द्वारा संपादित एवं प्रकाशित “उत्तर प्रदेश कवयित्री विशेषांक” का लोकार्पण किया गया | जिसमें […]
ग़ज़ल
बना ले जो तुम्हें अपना वही रसधार बाकी है | सजा दे गुल से गुलशन जो अभी वो प्याऱ बाकी है | मुक़म्मल ख्वाब हों जिससे वही तदबीर करनी है, भरे बाजार में अपना वही किरदार बाकी है | तुम्हारे जुल्म की आंधी नहीं दीपक बुझा पाई , तिमिर की हर शिलाओं पर अभी उजियार […]
दीपक जलाएं मिलकर
अंधेरे में जो उजाला भर दे, चलो वो दीपक जलाएं मिलकर | कलुश जो मन का मिटा दे सारा, वो ज्ञान दीपक जलाएं मिलकर | घने तिमिर में न भय ग्रसित हों,न डगमगाएं क़दम हमारे | करो कृपा ऐसी दीनबंधु ,घना अंधेरा मिटाएं मिलकर | हो लाख बाधाएं रास्ते में, न रुकने पाएं कदम हमारे […]
सीता
जनकपुरी की बगिया में इक सुंदर सी कली खिली रंग गुलाबी होंठ लाल ये बात नगर में फैल गयी हल की सीधी रेखा से जन्मी तो सीता कहलायी वैदेही मैथली सिया से सारी मिथिला हर्षायी नील गगन मुस्काए गाए धरती धानी रंग हुयी हरे पेड़ लहराएं गायें और सुनहरी भोर हुई पीली -पीली सरसों भी […]
ग़ज़ल
2212 1212 2212 22 मगरूरियत का जख्म यूँ गहरा हुआ सा है | हर आदमी यहाँ लगे बिखरा हुआ सा है | नश्तर चला रहा यहाँ इंसान पे इंसा – हर ओर दहशतों भरा मौसम हुआ सा है | नफ़रत के अंधकार में सूरज छिपा है अब – चारों तरफ़ डरा डरा इंसा हुआ सा […]
कविता – सीता
जनकपुरी की बगिया में इक सुंदर सी कली खिली रंग गुलाबी होंठ लाल ये बात नगर में फैल गयी हल की सीधी रेखा से जन्मी तो सीता कहलायी वैदेही मैथली सिया से सारी मिथिला हर्षायी नील गगन मुस्काए गाए धरती धानी रंग हुयी हरे पेड़ लहराएं गायें और सुनहरी भोर हुई पीली -पीली सरसों भी […]