कविता : वो दिन
जीवन की आपाधापी से लेकर कुछ बक्त उधार लौटता हूँ जब गाँव के गलियारों में तो चाहता हूँ जी लेना
Read Moreजीवन की आपाधापी से लेकर कुछ बक्त उधार लौटता हूँ जब गाँव के गलियारों में तो चाहता हूँ जी लेना
Read Moreकिसी विचारधारा का पनपना निर्भर करता है बहुत हद तक किसी व्यक्ति विशेष की परवरिश और आस – पास के
Read Moreहे पडोसी मुल्क किस गरूर में चूर रहते हो तुम आये दिन कर बैठते हो कोई नया ही दुसाहस कभी
Read Moreमैं पाता हूँ कभी – कभार एक ठहराव अपने भीतर कर देना चाहता हूँ कलमबध अनेक पीड़ाओं को और साथ
Read Moreजिल्द में लिपटा, पिता का दिया शब्दकोश , अब हो गया है पुराना, ढल रही उसकी भी उम्र, वैसे ही
Read Moreफिर जल गया है रावण हर बार की तरह फूटते पटाखों के शोर और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच l
Read Moreलॉन्ग रूट की बस सर्पीली पहाड़ी सड़क से गुजर रही थी l कंडक्टर की सीटी के साथ ही बस सवारियों
Read Moreउस पहाड़ी और सर्पीली सड़क के, हर मोड़ पर, मकानों के झुरमुट, के समीप से , जब भी गुजरती है,
Read Moreएक रोज मैं यूं ही बैठा नदी किनारे सोचता रहा अनायास ही बहुत देर तक ! कल-2 करता वह नदी
Read Moreईश्वर का सुमिरन , करता वह बुजुर्ग, चेहरे पर प्रसन्नता, संतोष और शांति की , आभा लिए, दिख जाता था
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