कविता

कविता : लिंगडू की गठरियाँ

उस पहाड़ी और

सर्पीली सड़क के,

फ़र्न कुल का पौधा जिसका वानस्पतिक नाम पैट्रिडियम एक्यूलिन्यूम है (हिमाचली बोली में इसे  लिंगडू  कहा जाता है)
फ़र्न कुल का पौधा जिसका वानस्पतिक नाम पैट्रिडियम एक्यूलिन्यूम है (हिमाचली बोली में इसे लिंगडू कहा जाता है)

हर मोड़ पर,

मकानों के झुरमुट,

के समीप से ,

जब भी गुजरती है,

कोई गाड़ी ,

नन्हें हाथ हर बार,

उठ जाते हैं ,

ऊपर की ओर ,

उठाये हुए ,

हाथों में ,

लिंगडू की गठरियाँ   l

 

मटमैले से कपडे पहने,

मगर चेहरे पर,

कोमल व निर्मल,

भाव लिए l

 

रूकती नहीं,

जब कोई गाड़ी ,

हताश हो जाते हैं वह ,

मगर फिर ,

लौट आती है ,

चमक ,

उन आँखों में ,

लगते ही  ब्रेक,

किसी गाड़ी की l

 

दौड़ पड़ते हैं सभी ,

एक साथ,

और जब खरीद,

ली जाती है,

उनमें से,

जिस किसी की भी,

लिंगडू की गठरियाँ,

हर्षित हो उठते हैं वह l

 

यह छोटी सी जीत,

बढ़ा देती है,

उनका हौसला,

और जगा देती है उम्मीद,

भविष्य में कुछ बड़ा,

और बेहतर

कर देने के लिए l

 

वह थमा देंगे,

कमाई किए चंद रुपये,

घर जाते ही,

माँ के हाथ में,

ताकि जुटाया जा सके,

जरुरत का सामान,

घर के लिए l

 

और छोटी पिंकी भी,

जोड़ रही है हिसाब,

ये सोचकर कि,

ले लिया जाएगा उसे,

अब नया बस्ता ,

स्कूल जाने के लिए l

 

मगर नहीं लौटेगी घर ,

अभी वह,

अपने साथियों के ,

बगैर,

जोकि खड़े हैं अब भी,

गढ़ाए हुए नज़र,

दूर तलक,

सड़क के मोड़ पर l

 

आश्वस्त है वे भी,

कि रुकेगी फिर,

कोई गाड़ी,

और बिक जाएंगी,

उनके  भी हाथों में,

थामी हुई,

लिंगडू की गठरियाँ l

– मनोज चौहान 

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लिंगडू अर्थात लिंगड़  –यह हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में पाया जाने वाला फर्न कुल का एक पौधा है, जो मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगता है। लिंगड़ का वानस्पतिक नाम पैट्रिडियम एक्यूलिन्यूम है, जो अप्रैल में पहाड़ों में उगता है। इसे बाजार में लाकर बेचा जाता है। प्रदेश के पहाड़ों के नदी नालों के आसपास उगने वाले लिंगड़ की सब्जी को लोग खूब पसंद करते हैं। इसके कुंडलीदार नर्म तनों को तोड़ कर सब्जी के उपयोग में लाया जाता है। जब यह सख्त होता है तो इसकी सब्जी नहीं बनती है। ग्रामीण इसके गुणों के चलते इसे खूब पसंद करते हैं। बागवानी विशेषज्ञ डॉ चिरंजीत परमार का  मानना है कि भले ही लिंगड़  हमारे यहां प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, लेकिन वास्तव में यह अमेरिका का लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है। अमेरिका में लिंगड़ मेटयूसिया स्ट्रियूथियोपैट्रिस, फिडलहैड अथवा शुतुरमुर्ग फर्न के नाम से मशहूर है। पहाड़ी लिंगड़ के पौष्टिक तत्वों के बारे में अभी तक खोज नहीं की गई है, लेकिन अमेरिका में पाए जाने वाले लिंगड़ का रासायनिक विश्लेषण करने पर पाया गया है कि इसमें विटामिन, खनिज, फाइबर, ओमेगा 6 फैट्टी व अमल है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। अमेरिकी गृहणियां इसकी कई प्रकार के व्यंजन तैयार करती हैं। हो सकता है कि हमारे यहां पाए जाने वाले लिंगड़ में भी इसी प्रकार के पौष्टिक तत्व हों। इस बारे में शोध किए जाने की आवश्यकता है।  – “फोकस हिमाचल साप्ताहिक , मंडी ,हि . प्र . से साभार “

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मनोज चौहान

जन्म तिथि : 01 सितम्बर, 1979, कागजों में - 01 मई,1979 जन्म स्थान : हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के अंतर्गत गाँव महादेव (सुंदर नगर) में किसान परिवार में जन्म l शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग), पीजीडीएम इन इंडस्ट्रियल सेफ्टी l सम्प्रति : एसजेवीएन लिमिटेड, शिमला (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : 20 मार्च, 2001 से (दैनिक भास्कर में प्रथम लेख प्रकाशित) l प्रकाशन: शब्द संयोजन(नेपाली पत्रिका), समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, मधुमती, आकंठ, बया, अट्टहास (हास्य- व्यंग्य पत्रिका), विपाशा, हिमप्रस्थ, गिरिराज, हिमभारती, शुभ तारिका, सुसंभाव्य, शैल- सूत्र, साहित्य गुंजन, सरोपमा, स्वाधीनता सन्देश, मृग मरीचिका, परिंदे, शब्द -मंच सहित कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविता, लघुकथा, फीचर, आलेख, व्यंग्य आदि प्रकाशित l प्रकाशित पुस्तकें : 1) ‘पत्थर तोड़ती औरत’ - कविता संग्रह (सितम्बर, 2017) - अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद(ऊ.प्र.) l 2) लगभग दस साँझा संकलनों में कविता, लघुकथा, व्यंग्य आदि प्रकाशित l प्रसारण : आकाशवाणी, शिमला (हि.प्र.) से कविताएं प्रसारित l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय – महादेव, तहसील - सुन्दर नगर, जिला - मंडी ( हिमाचल प्रदेश ), पिन - 175018 वर्तमान पता : सेट नंबर - 20, ब्लॉक नंबर- 4, एसजेवीएन कॉलोनी दत्तनगर, पोस्ट ऑफिस- दत्तनगर, तहसील - रामपुर बुशहर, जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश)-172001 मोबाइल – 9418036526, 9857616326 ई - मेल : mc.mahadev@gmail.com ब्लॉग : manojchauhan79.blogspot.com