भाव जब होता प्रखर है
कंठ तब होता मुखर है। भाव जब होता प्रखर है। भीतर बवंडर डोलता है, और हृदय ये बोलता है,
Read Moreकंठ तब होता मुखर है। भाव जब होता प्रखर है। भीतर बवंडर डोलता है, और हृदय ये बोलता है,
Read Moreझुका के सिर, उम्र भर वो तो ख़िदमद में रहा।। सच से वाकिफ था हमेशा ही अपने कद में रहा।।
Read Moreख्वाहिशों का ये ज़ख़ीरा दिल मे गर रह जाएगा। ज़ख्म एक रिसता हुआ सा उम्र भर रह जाएगा।। कूच करके
Read Moreआंखों को गर अश्कों से, भिगोना ज़रूरी है। पलकों में ख्वाबों का भी संजोना ज़रूरी है।। सुकून की तलाश
Read Moreपानी का था गुमां, महज़ बुलबुला था मैं।। कैसा खटक गया, जो ज़रा मनचला था मैं।। छल झूठ शामिल दम्भ
Read Moreमुमकिन सज़ा-ए-मौत या वजह खुदखुशी मिले। कातिलों के शहर में, अब कैसे ज़िन्दगी मिले।। किस्मत की बात यार है, जो
Read Moreलोग जा चुके घर को सारे, मुझको यूँ बेज़ार छोड़ के। फिर भी मैं बैठा हूँ, जाऊं कैसे ये
Read Moreआहटें, चौखटों तक अब मेरी, आती कम हैं। औ’ हवाएं भी खिड़कियों को हिलाती कम हैं।। गलियाँ सूनी, बदमिज़ाज़ सड़कें
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