वो है बेटी (कविता)
बाबुल की दहलीज को जो न भूल पाये वो है बेटी जाते जाते भी आंसुओं से आंगन सींच जाए वो
Read Moreबाबुल की दहलीज को जो न भूल पाये वो है बेटी जाते जाते भी आंसुओं से आंगन सींच जाए वो
Read Moreक्यों तेरी चंचलता भी न रही वो रूठने की अदा भी न रही वो ज़िद्द कर कर के खिलोनो के
Read Moreराखी के अवसर पर बहन जब भाई को राखी बांधती है तो उस से किसी उपहार या पैसों की अपेक्षा
Read Moreवो कहते हैं कभी लिखना मत छोड़ना हम रहे न रहे जहां में कोरे कागज पे अपने जज्बातों को रखना
Read Moreसबसे पहला हक़ है तुम्हारा अरे एक बार अपना हक़ जताकर तो देखो न जाने दूंगा वापिस कभी तुमको कम
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