ग़ज़ल
बेशक वो आइने में संवरती जरूर है । पर रिन्द मैकदों में बहकती जरूर है ।। हुश्नो शबाब में है
Read Moreतूफानों का हद से गुजरना जारी है । छत से तेरे चाँद निकलना जारी है ।। ज्वार समन्दर में आया
Read Moreपराये मुल्क से उसकी वफादारी नहीं जाती । लहू गर हो बहुत गन्दा तो गद्दारी नहीं जाती ।। वतन के
Read Moreवर्तमान परिवेश की दो महत्वपूर्ण घटनाये ऐसी दृष्टिगोचर हुई हैं जो देश की आत्मा पर चोट करतीं हुई प्रतीत हो
Read Moreवक्त के साथ ऐ जालिम, ज़माने छूट जाते हैं । मुहब्बत क्यों ख़ज़ानो से ख़ज़ाने छूट जाते हैं ।। तजुर्बा
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