गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ग़जल की दास्तान तक चलिए ।
थोड़ी लम्बी उड़ान तक चलिए ।।

इस बुलन्दी में कुछ नहीं हासिल।
वक्त की हर ढलान तक चलिए।।

हया में कुछ न कह सकी मुझसे ।
उसकी ठहरी जबान तक चलिए ।।

धुएं में फ़िक्र को गर उड़ाना है ।
चिलम वाली दुकान तक चलिए ।।

कुछ तकल्लुफ से खौफ बरपा है ।
मैकदो मे ईमान तक चलिए ।।

देखनी गर तुझे तासीर ए लहर ।
नदी में भी उफान तक चलिए ।।

साजिशें मुल्क तोड़ देने की ।
दुश्मनों के मकान तक चलिए ।।

गर मिटाने का हौसला तुझमे ।
तो यहां खानदान तक चलिए ।।

सितम लहरों के रोकते जज्बे ।
लिए हसरत कटान तक चलिए ।।

पस्त होकर वो जान देता है ।
दर्दे मंजर किसान तक चलिए ।।

दौलत ए हिन्द के लुटेरे जो ।
उनके ऊंचे मचान तक चलिए ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com