” आखिर चाहते क्या हैं लोग “
कर लिए हैं हमने कपाट बंद दिल के बिन इजाजत आकर अहसान जताते हैं लोग हाँ में हाँ मिला दो
Read Moreकर लिए हैं हमने कपाट बंद दिल के बिन इजाजत आकर अहसान जताते हैं लोग हाँ में हाँ मिला दो
Read Moreटूट जाता है बाँध सब्र और संयम का जब महसूस होता है तुम्हारा तो कोई भी नहीं लगने लगता है
Read Moreरोज की तरह वही मेरा पुराना सवाल आखिर कितना प्रेम है तुम्हें मुझसे और तुम्हारा फिर उसी तरह चिढ़ाना जितना
Read Moreकर लेने दो कुछ काले पन्ने दिल-दिमाग को शांति मिलती है नहीं चाह है मुझे वाह-वाही की चाह है तो
Read Moreचोट लगती है जब किसी के अँहम को तिलमिला जाता है क्रोध में लाल-पीला हो जला देना चाहता है अपने
Read Moreभावों का सैलाब जब उमड़ता है दिल में बहा ले जाता है हमें दर्द के संमदर में याद आते हैं
Read Moreबाप का घर-बार तक बिकता है तब कहीं जाकर बेटी का घर बसता है !! हमारे इस दोगले सभ्य समाज
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