कविता प्रवीण माटी 03/11/2017 बचपन मोबाइल में उलझा हुआ बचपन गांव की गलियों को याद नहीं करता अकेले रहना पसंद करते हैं आजकल उन बूढी Read More
कविता प्रवीण माटी 16/10/2017 ओस की बूँदें सुबह की सोंधी सोंधी खुशबू हवा की ओस की बूंदों में नहाई घास पर चलते मेरे कदम लगता है Read More
कविता प्रवीण माटी 16/10/2017 चेहरा बहुत चीखा ,बहुत चिल्लाया कोशिश करता रहा, कभी रह ना पाया अब क्या करूं समझ से परे दिखता मुझे Read More
मुक्तक/दोहा प्रवीण माटी 16/10/2017 हमने हमनें आन, बान और शान लिखा है हमनें लहू का कतरा-कतरा प्राण लिखा है हमनें तप ,त्याग वैराग लिखा है Read More
कविता प्रवीण माटी 16/10/2017 अभिलाषा अभिलाषा तपता रहूं आवे में जैसे कुम्हार के बनाए आवे में तपते हैं मटके ,दिये!! संघर्ष जारी है पग पग Read More
कविता प्रवीण माटी 07/10/2017 दिखावा लोग दिखावा करते हैं कि वह मानते हैं भगवान को जब की असलियत यह होती है कि वह मानते नहीं Read More
गीत/नवगीत प्रवीण माटी 07/10/2017 बचपन बहुत नाचे ,बहुत खेले वो कांटे भी बहुत झेले वो सरसों का खेत पिला अब मुझे बुलाता है वो Read More
कविता प्रवीण माटी 07/10/2017 संदेश मेरा संदेश सुनो जरा कान खोलो चुप क्यूँ हो बैठे? अब कुछ तो बोलो लुटता संसार दिखे वहशी घुमे रात Read More
कविता प्रवीण माटी 16/09/2017 मदारी कौन है मदारी ? सवाल चुभने वाला है देखो कौन-कौन यहां सुनने वाला है ! जनता हर बार बनती Read More
कविता प्रवीण माटी 16/08/2017 वंदेमातरम आओ आज जन-जन साथ हो आओ अब तो वतन की बात हो चलो कुर्बानियों का आगाज करो 125 करोड़ Read More