दास्तान बनती खाने-खिलाने की बातें…
मौका भी रहता है और दस्तुर भी,तभी तो खाने-खिलाने की बात होती है।अब खाने-खिलाने पर भी यदि प्रश्नचिन्ह लग जाएं,पाबन्दी
Read Moreमौका भी रहता है और दस्तुर भी,तभी तो खाने-खिलाने की बात होती है।अब खाने-खिलाने पर भी यदि प्रश्नचिन्ह लग जाएं,पाबन्दी
Read Moreआज जब सुबह घुमने निकला तब अंधकार पूरी तरह से छटा नहीं था और भानू देव भी अपनी स्वर्ण रश्मियों
Read More“अरे सुमन,तुम अपने बच्चों के प्रति कैसी लापरवाह हो;अभी कितने छोटे हैं और तुम उनपर ध्यान ही नहीं रख रही
Read Moreअपनों का बिछोह कितना कष्टप्रद होता है, कितना त्रासदायी होता है, यह वही व्यक्ति जानता है जो भुक्तभोगी है अर्थात
Read Moreअभी इस बात पर बहस जारी है कि सरकार या न्यायालयों को लोगों की आस्था और विश्वास के मामलों में
Read Moreइस वर्ष भी तुमने मेरे पुतले का दहन कर ही दिया;आखिर कब तक मुझे जलाने का ढ़ोंग कर अपने दम्भ
Read Moreबीते दिनों एक घटना ने मुझे विचलित कर दिया। द्वार पर तीन भगवा वस्त्रधारी आकर खड़े हुए और उन्होंने कॉल
Read Moreस्वयं का होना पर्याप्त नहीं है क्यों हैं किसके लिए हैं इसमें नैराश्य का भाव है अकेलेपन का अहसास है,
Read Moreलौकिक और अलौकिक जगत की अवधारणा सभी धर्मों में मान्य की गई है।लौकिक जगत जिसमें हम निवास कर रहे हैं
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