ग़ज़ल: बदलते रहे
वो क्यों बोलने में सँभलते रहे लगा मुझको सच वो निगलते रहे वहाँ ख़ास की पूछ होती रही मियां आम
Read Moreवो क्यों बोलने में सँभलते रहे लगा मुझको सच वो निगलते रहे वहाँ ख़ास की पूछ होती रही मियां आम
Read Moreजो दिया था दिल उन्हें गाता हुआ मिल गया वापस मुझे टूटा हुआ चोरियां उस रात कुछ ज़्यादा हुईं देर
Read Moreकिस तरह तुमने भला दिल को सँभाला होगा। जब मुझे अपने खयालों से निकाला होगा। दूर वो मुझसे रहे खुश
Read Moreमेरी चिता के ऊपर पहचान तब बनाना, जगतारिणी नदी में तब अस्थियां बहाना। लाखों गये डगर से, पर मुश्किलें वहीं
Read Moreठग गया विश्वास फिर से क्या कहूँ मैं क्या हुआ। फिर मुझे लगता है मेरे साथ इक धोखा हुआ। बेच
Read Moreसाठ साल का ठाट ले गया राज ले गया पाट ले गया सोयेगा ना सोने देगा आम आदमी खाट ले
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