बहती है पुरवाई
माह फरवरी आतुर है मन, धरा प्रेम बरसाई, सुरभित गुलाब की पंखुड़ियाँ,
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Read Moreअरे! तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई घर के अंदर आने की ? पता नहीं कहाँ–कहाँ से लोग आ जाते
Read More“ओह गॉड ! तो तुम घर पर ही हो। मैंने तुम्हें कहाँ–कहाँ नहीं ढूँढा; और
Read More” शीला मुझे तुम्हारी बहुत फिक्र हो रही है,और होगी भी क्यों नहीं; उन्तीस बरस
Read Moreठंडी–ठंडी सी पुरवाई, दस्तक दे चहुंँओर। श्वेत वस्त्र धारण की धरती, हुई सुहानी भोर।। दृश्य देख धुंँधला–धुंँधला सा,खींचे लंबी श्वास।
Read Moreनारी की महत्ता व अस्तित्व को अवगत कराता पर्व : एकादशी देवउठनी// हमारे छत्तीसगढ़ में तीज-त्यौहारों का बहुत महत्व है।
Read Moreपींयर –पींयर धनहा बाली। बिहना पड़थे सूरज लाली।। घाम अगासा के वो सहिथे। धान सोन कस चमकत रहिथे।। चिरई–चिरगुन गाना
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